दानव के घर भक्त का जन्म

Verified by: Daya Agrawal | Updated on: September 16, 2021

एक पुरानी प्रचलित कहावत है, कि यदि माता निर्धार करे तो यह कवाहत को भी गलत कर सकती है । और इतिहास के कई प्रसंग इस बात को साबित कर सकते है । माता के मनोबल और गर्भावस्था में किए संस्कारो के सिंचन ने सचमुच चमत्कार कर दिखाएँ है । इस अनुसंधान में आज हम बात करेंगे । भक्त प्रहलाद का जन्म दानवकुल में हुआ था । इस बात से हम सब वाकेफ है । दानवकुल में जन्म लेने के बावजूद उनके गुण देव समान थे । एसा कैसे ? क्या कारण है ? जिसने दानवकुल में प्रहलाद को देव जैसे गुणो का स्वामी बनाया । उत्तर है ‘गर्भसंस्कार’ । गर्भसंस्कार मतलब गर्भवती स्त्री द्वारा बच्चे को गर्भ में ही किया जानेवाला संस्कारो का सिंचन । गर्भावस्था दौरान भक्त प्रहलाद की मातृश्री कयाधु नारदमुनि के आश्रम में रहते थे । उनका संपूर्ण समय भगवान नारायण के मंत्र जाप और प्रभु की कथा-वार्ता सुनने में व्यतीत रहेता था । आश्रम का वातावरण बेहद शांत और भक्तिमय था । भोजन भी शुद्ध और सात्विक मिलता था । ऐसे भक्तिमय वातावरण का प्रभाव उसके गर्भस्थ शिशु पर हुआ जिसके फल स्वरूप भक्त प्रहलाद में भक्ति के बीज संस्कारित हुए और भारतवर्ष को श्रेष्ठ भक्त की भेंट मिली । सगर्भा स्त्री जैसे माहोल में रहे और जैसा चिंतन करे उसकी बच्चे पर होनेवाली असर समझने के लिए यह एक श्रेष्ठ उदाहरण है ।  गर्भसंस्कार की वजह से ही शायद राक्षस हिरण्यकश्यपु का पुत्र भक्त प्रहलाद देवतुल्य कहलाते थे । सचमुच गर्भावस्था दौरान हर एक स्त्री बच्चे के शारिरीक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास पर भी ध्यान केन्द्रित करें तो नब्बे वर्ष का काम नव महिने में हो जाए और चाहे वैसी दिव्य आत्मा को जन्म देकर इस विश्व को उत्तम संतान की भेंट दे सकती है ।

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